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बस फिल्म की रील पर छा जाए अपना मध्यप्रदेश

विवेक पाठक

बस फिल्म की रील पर छा जाए अपना मध्यप्रदेश
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आइफा अवार्ड समारोह मार्च 2020 में होने वाला है मगर उससे पहले मध्यप्रदेश में फिल्मों के प्रोत्साहन के लिए तेजी से निर्णय लिए जा रहे हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने अपनी फिल्म नीति की घोषणा कर दी है। सरकार ने निर्माता निर्देशकों को प्रस्ताव दिया है कि वे पर्दे पर जितना मध्यप्रदेश को दिखाएंगे सरकार उतनी उन्हें करों से छूट से लेकर अनुदान भी देगी। सरकार एक फिल्म को 50 लाख से 5 करोड़ तक प्रोत्साहन राशि देने को तैयार हो गयी है।

फिल्मों के प्रोत्साहन के इन प्रयासों के लिए वाकई मुख्यमंत्री कमलनाथ तारीफ के हकदार हैं। वे फिल्म निर्माताओं को मध्यप्रदेश का आंगन दिखाने के लिए पूरी जोर आजमाइश कर रहे हैं। जैकलीन फर्नांडीज और सलमान खान के साथ आइफा फिल्म समारोह की इंदौर में घोषणा इस दिशा में बड़ा कदम था। नि:संदेह इस तरह के प्रयासों से मध्यप्रदेश में सिनेमा और पर्यटन की नई जुगलबंदी शुरु हो सकती है। मध्यप्रदेश कला, संस्कृति, आदिवासी जनजीवन और प्रकृति से समृद्ध है। यहां की नदियां, पर्वत, झरने, बाग बगीचे से लेकर वन्य जीव संपदा का देश दुनिया में डंका बजा है। मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट यूं ही नहीं कहलाता। यहां के नेशनल पार्क और अभयारण्य बाघों और तमाम वन्यजीवों से भरे हुए हैं। हिन्दी फिल्मों में डकैतों पर जितनी फिल्में बनती हैं उनमें असल रंग मध्यप्रदेश में फिल्माई गई फिल्मों में देखने को मिला है। चंबल के असल बीहड़ों के बिना बीहड़ पर कैसे और काय की फिल्म। ऐसा मुंबई के नामी निर्माता निर्देशक भी मानते हैं तभी तो जब फूलन देवी पर बैंडिट क्वीन बनाने की बात आई तो नामी निर्माता शेखर कपूर चंबल निकल पड़े और पान सिंह तोमर की कहानी तिग्मांशु धूलिया ने मुरैना आकर शूट की। चंबल पर इसके बाद भूमि पेंडनेकर की सोनचिडिय़ा से लेकर तमाम फिल्में बनती रहीं हैं। ग्वालियर भी साल दर साल फिल्मों के लिए अनुकूल होता दिख रहा है। यहां कंगना रनोत की रिवॉल्वर रानी में महाराज बाड़ा, दौलतगंज से लेकर पुराना महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज तक फिल्माया गया था। और तो और कंगना ने कुछ दिन के लिए बोटों का दीदार करने वाली स्वर्णरेखा में भी रिवाल्वर रानी बनकर उन दिनों बोट चलायी थी। हॉलीवुड फिल्म सिंग्युलिरैटी में विपाशा बसु, मौसम में शाहिद कपूर और सोनम कपूर तो लुकाछिपी में ग्वालियर के ही कार्तिक आर्यन फिल्माए जा चुके हैं। ग्वालियर में तो ग्वालियर ही नाम से पिछले दिनों नीना गुप्ता और संजय मिश्रा शूटिंग कर चुके हैं तो कुल मिलाकर अपने मध्यप्रदेश में फिल्मी हलचल तो लगातार हो रही है। इसी तरह महेश्वर के घाट, ओरछा के मंदिर फिल्माए गए हैं। चंदेरी में तो स्त्री, सुई धागा जैसी तमाम फिल्मों की लाइन लग गई थी। भोपाल तो है ही फिल्मों के मुफीद। यहां राजनीति, पंगा जैसी फिल्मों की शूटिंग आए दिन होती रहती है। इन शहरों के अलावा भी मध्यप्रदेश में फिल्मों की शूटिंग के लिहाज से ऐसा बहुत कुछ है जो कैमरों की नजर से अछूता रह गया है। मुंबई के ये कैमरे तभी मध्यप्रदेश के सौन्दर्य को देख सकते हैं जब सरकार निर्माता निर्देशकों को वहां तक पहुंचने के रास्ते आसान करे। जो वहां पहुंचे उसको पुरस्कृत भी करे। तारीफ की बात होगी कि कमलनाथ सरकार की हालिया घोषणा इन्हीं जरुरतों के लिहाज से सही समय पर सही कदम साबित हो रही है। सरकार ने आइफा अवार्ड समारोह मुंबई के बाद इंदौर में कराकर पहला चौका मारा था तो तुरंत ही फिल्म पर्यटन नीति की घोषणा कर फिर नंबर बढ़ा लिए हैं।

सरकार ने सबसे अच्छी यह बात की है कि अगर निर्माता फिल्म में स्थानीय कलाकारों को मौका देते हैं तो प्रदेश से उन्हें अनुदान मिलेगा। अगर जैसा सोचा गया है वैसा हो जाता है तो मध्यप्रदेश के युवा और होनहार कलाकारों को फिल्मों में सहूलियत से काम मिलने का दौर शुरु हो सकेगा। ऐसा प्रयोग उत्तरप्रदेश ने किया था और खुशी की बात है कि तब के बाद वहां न अब मुंबई से तय हर दूसरी फिल्म बन रही है बल्कि वहां की लोक संस्कृति, स्मारक, पर्यटन स्थलों की ब्रांडिंग के साथ साथ यूपी के कलाकारों को फिल्मों में जमकर काम भी मिल रहा है। मध्यप्रदेश सरकार ने फिल्मों के जरिए प्रदेश की ब्रांडिंग का रोडमैप तो बना लिया है अब आगे जरुरत होगी कि इसको अमलीजामा पहनाने के लिए साफ नीयत और ठोस इरादों की। इसके लिए प्रारंभ से ही मेहनती टीम बनाकर जिम्मेदारी तय कर दी जानी चाहिए ताकि घोषणा शत प्रतिशत हकीकत में बदल सके। अगर ऐसा करने में प्रदेश का पर्यटन मंत्रालय सफल हो जाता है तो नि:संदेह यह बहुत बड़ी सफलता होगी। फिल्मों में अगर मध्यप्रदेश स्थान पाएगा तो न केवल यहां का पर्यटन और उससे जुड़ा हुआ कारोबार बढ़ेगा बल्कि कला, रंगमंच को व्यवसाय बनाने वालों को अपने प्रदेश में मनचाहा रोजगार भी मिल सकेगा। अपने प्रदेश में अभिनय का मौका पाकर जब तमाम सितारे तैयार होंगे तो भला किसे अच्छा नहीं लगेगा।

Updated : 23 Feb 2020 1:00 AM GMT
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