Home > देश > सबरीमाला मंदिर केस : सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन पर जल्द सुनवाई नहीं

सबरीमाला मंदिर केस : सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन पर जल्द सुनवाई नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, तय प्रक्रिया के तहत लिस्ट की जाएगी, दशहरा बाद करेंगे सुनवाई

नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक को असंवैधानिक करार देने के फैसले के खिलाफ दायर रिव्यू पिटीशन पर जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया है। आज नेशनल अयप्पा डिवोटी एसोसिएशन के वकील मैथ्यु नेदुम्पारा ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष याचिका पर जल्द सुनवाई के लिए मेंशन किया। चीफ जस्टिस ने याचिका पर जल्द सुनवाई से इनकार करते हुए कहा कि ये तय प्रक्रिया के तहत लिस्ट की जाएगी।

नेदुम्पारा ने कहा कि मंदिर 16 अक्टूबर से दशहरा के लिए खोल दिया जाएगा इसलिए इस पर जल्द सुनवाई करने और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगाया जाए। तब कोर्ट ने कहा कि दशहरा की छुट्टी के पहले इस पर सुनवाई नहीं हो सकती है।

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक को असंवैधानिक करार देने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में तीन रिव्यू पिटीशन दायर किए गए है। एक याचिका नेशनल अयप्पा डिवोटी एसोसिएशन ने दायर की है। दूसरी याचिका नैयर सर्विस सोसायटी ने जबकि तीसरी याचिका कंशियस ऑफ वुमन ने दायर की है।

नेशनल अयप्पा डिवोटी एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि जो महिलाएं आयु पर प्रतिबंध लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आईं थीं वे अयप्पा भक्त नहीं हैं। ये फैसला लाखों अयप्पा भक्तों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करते हैं और इस फैसले को वापस लिया जाना चाहिए।

नैयर सर्विस सोसायटी की ओर से केवी मोहन द्वारा दायर रिव्यू पिटीशन में कहा गया है कि संविधान पीठ का 28 सितंबर का फैसला सही नहीं है। याचिका में कहा गया है कि न तो कोर्ट और न ही विधायिका एक धर्म या अभ्यास या पंरपरा या विश्वास को सुधार सकती है। याचिका में कहा गया है कि यंग लॉयर्स एसोसिएशन केवल एक तीसरा पक्ष है ।

कंशियस ऑफ वुमन की याचिका में कहा गया है कि सबरीमाला देवता के भक्त कोई अलग नहीं हैं। याचिका में कहा गया है कि किसी भी धार्मिक विश्वास या प्रथाओं को चुनौती देने के लिए ये फैसला दरवाजा खोलता है।

पिछले 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाया था । कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं के साथ काफी समय से भेदभाव होता रहा है। महिला पुरुष से कमतर नहीं है। एक तरफ हम महिलाओं को देवी स्वरुप मानते हैं दूसरी तरफ हम उनसे भेदभाव करते हैं। कोर्ट ने कहा था कि बायोलॉजिकल और फिजियोलॉजिकल वजहों से महिलाओं के धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता को खत्म नहीं किया जा सकता है। तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा समेत चार जजों ने कहा था कि ये संविधान की धारा 25 के तहत मिले अधिकारों के विरुद्ध है।

जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने बाकी चार जजों के फैसले से अलग फैसला सुनाया था। उन्होंने कहा था कि धार्मिक आस्था के मामले में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा था कि पूजा में कोर्ट का दखल ठीक नहीं है। मंदिर ही यह तय करे कि पूजा का तरीका क्या होगा। मंदिर के अधिकार का सम्मान होना चाहिए। उन्होंने कहा था कि धार्मिक प्रथाओं को समानता के अधिकार के आधार पर पूरी तरह से परखा नहीं जा सकता है। यह पूजा करनेवालों पर निर्भर करता है न कि कोर्ट यह तय करे कि किसी के धर्म की प्रक्रिया क्या होगी। जस्टिस मल्होत्रा ने कहा था कि इस फैसले का असर दूसरे मंदिरों पर भी पड़ेगा।

Updated : 18 Oct 2018 7:27 PM GMT
Tags:    
author-thhumb

Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


Next Story
Top