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दो राज्यों में विधानसभा की सीटें बढ़ाने के लिए केन्द्र ने की पहल, झारखंड की लटकी

दो राज्यों में विधानसभा की सीटें बढ़ाने के लिए केन्द्र ने की पहल, झारखंड की लटकी
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नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। आंध्र प्रदेश में विभाजन यानि तेलंगाना अलग राज्य बनने के पहले कुल 294 विधानसभा सीटें थीं। जिनमें से 119 सीटें तेलंगाना के हिस्से में चली गईं। इसके चलते आंध्र प्रदेश में मात्र 175 सीटें रह गई हैं। अब दोनों ही राज्य केन्द्र सरकार से अपने -अपने यहां विधानसभा सीटें बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश अपने यहां 50 विधानसभा सीटें और तेलंगाना 34 विधानसभा सीटें बढ़ाने की मांग कर रहा है। इनके अलावा झारखंड भी बहुत समय से राज्य में 40 के लगभग विधानसभा सीटें बढ़ाने की मांग कर रहा है। ताकि वहां विधानसभा की कुल सीटें 120 हो जाएं जिससे राज्य में विधान परिषद का गठन हो सके। 120 विधानसभा सीटों से कम संख्या वाले राज्यों में विधान परिषद का गठन करने की इजाजत नहीं है। इसीलिए तेलंगाना भी केन्द्र सरकार पर सीटें बढ़ाने के लिए दबाव बनाया हुआ है। वहां अभी विधानसभा की कुल सीटें 119 ही हैं। इसी तरह अन्य कई राज्य विधानसभा सीटें बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।

सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों की इस मांग पर सहमत हो गई है। इसके लिए कैबिनेट नोट भी तैयार कर लिया गया है और इस कैबिनेट नोट पर मंत्री समिति विचार-विमर्श भी कर रही है। लेकिन अचरज है कि इसी तरह की मांग झारखंड सरकार ने भी की है,जहां भाजपा का राज है। फिर भी झारखंड की मांग पर केंद्र की भाजपानीत सरकार विचार नहीं कर रही है।

इस बारे में पूर्व सांसद हरिकेश बहादुर का कहना है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में विधानसभा की सीटें बढ़ाई जाने की जरूरत तो है, लेकिन भाजपा को यह लगता है कि यह सीटें बढ़ाने में इनमें से कई सीटें उसको मिल जाएगी यानि कई सीटों पर भाजपा जीत सकती है। इस मुद्दे पर आंध्र प्रदेश की राजनीतिक के जानकार वरिष्ठ पत्रकार पी. वेंकटेश का कहना है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की स्थिति ऐसी है कि भाजपा कई दशक से बहुत कोशिश के बाद भी पैठ नहीं बना पा रही है। ऐसे में दोनों राज्यों की मांग पर विधानसभा की सीटें बढ़ाकर वह वहां के लोगों को लोगों की सहानुभूति लेना चाहती है। वैसे अभी तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में जो माहौल और समीकरण है, उसको देखकर लगता है कि भाजपा के लिए वहां राह आसान नहीं है। आगामी चुनावों में दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की विधानसभा और लोकसभा की सीटें बढ़ने की संभावना है।

आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना के राजनीतिक दल चाहते हैं कि केन्द्र सरकार उनके यहां विधानसभा की सीटें बढ़ाने की मंजूरी जल्दी दे दे ,ताकि इन दोनों राज्यों में अगामी विधानसभा चुनावों में बढ़ी सीटों पर भी चुनाव हो जाए। वरिष्ठ पत्रकार पी. वेंकटेश का कहना है कि आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना की सरकारें और लगभग सभी राजनीतिक दल राज्य में विधानसभा सीटें बढ़ाना चाहते हैं और इसके लिए दबाव भी बनाये हुए हैं। केन्द्र सरकार ने इसकी फाइल भी आगे बढ़ा दी है। लेकिन पेंच यह फंस रहा है कि यदि केन्द्र सरकार ने इसकी मंजूरी दे दी तो सीटें 2011 की जनसंख्या के आधार पर बढ़ाई जायेंगी या 2021 में होने वाले जनसंख्या का परिणाम आने के बाद उसके आधार पर। इसकी तोड़ के लिए दोनों राज्यों के राजनीतिक कह रहे हैं कि हर वर्ष बढ़ने वाली जनसंख्या के आधार पर प्रदेश में विधानसभा सीटें बढ़ा दी जाएं। इसके लिए कोई तर्क देकर लटकाने की जरूरत नहीं है।

जहां तक झारखंड में विधानसभा सीटें बढ़ाने का सवाल है तो इस बारे में झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन का कहना है कि झारखंड में भी विधानसभा की सीटें बढ़ाई जानी चाहिए। इसके लिए बहुत पहले से मांग की जा रही है। लेकिन जैसा सुनने में आ रहा है कि केंद्र सरकार ने जो कैबिनेट नोट तैयार किया है और मंत्रियों की समिति जिस पर विचार कर रही है, उसमें झारखंड विधानसभा की सीटें बढ़ाये जाने का एजेंडा नहीं है। इससे तो यह लगता है की राज्य की भाजपा सरकार इसके लिए बहुत जोर नहीं दे रही है और केंद्र की भाजपा सरकार यह चाहती नहीं है कि झारखंड में विधानसभा की सीटें बढ़ें। इसी तरह कई अन्य राज्यों की भी मांग विधानसभा सीटें बढ़ाने की है। लेकिन केन्द्र सरकार उस पर चुप्पी साधे हुए है।

इस बारे में भाजपा नेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार संसाधन व अन्य कई मुद्दों पर विचार कर ही किसी राज्य की विधानसभा सीटें बढ़ाने का निर्णय करती है। ऐसे में वह जो कर रही है कुछ सोच समझ कर ही कर रही है। इसलिए उस पर आरोप लगाना ठीक नहीं है। लेकिन यह तो सही है कि बड़े विधानसभा वाले क्षेत्र के लोगों को, छोटा विधानसभा मिल जाने से वहां के जनप्रतिनिधियों से मिलने और कामकाज कराने में सहूलियत हो जाएगी।

Updated : 3 Oct 2018 9:58 AM GMT
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Swadesh Digital

स्वदेश वेब डेस्क www.swadeshnews.in


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