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अयोध्या में राम मंदिर को लेकर अब संत समाज आर या पार के मूड में

अयोध्या में राम मंदिर को लेकर अब संत समाज आर या पार के मूड में
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नई दिल्ली/स्वदेश वेब डेस्क। अयोध्या में राम मंदिर को लेकर देश के शीर्ष संत अब आर या पार के मूड में आ गए लगते हैं। सर्वोच्च न्यायालय की ओर से राम मंदिर पर फैसले में की जा रही कथित देरी से भी देश का संत समाज बेहद गुस्से में है।

जानकारी के मुताबिक राम मंदिर से जुड़ी संतों की उच्चाधिकार समिति की पांच अक्टूबर को विश्व हिंदू परिषद ने बैठक बुलाई है। माना जा रहा है कि इस बैठक में राम मन्दिर बनाने को लेकर संत कोई बड़ा फैसला कर सकते हैं। संतों की इस समिति में देश भर के 36 प्रमुख संतो को आमंत्रित किया गया है। बैठक दिल्ली में होगी।

इस समिति के प्रमुख ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती हैं। समिति में राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास, जगतगुरु रामानंदाचार्य हंसदेवाचार्य आदि संत है। सूत्रों के मुताबिक संतों की बैठक के लिए विश्व हिंदू परिषद ने सभी संतों को पत्र जारी किया है और राम मंदिर निर्माण के लिए निर्णय लेने के लिए बैठक का न्योता भेजा है। बैठक दिल्ली में होगी।

अगर अतीत के आइने में देखें तो श्री राम जन्मभूमि के आंदोलन में दो तीन बातें प्रमुख रूप से देखी जा सकती हैं। जब ऐसी परिस्थितियां बनीं तब हिन्दू समाज ने विस्फोट कर दिया। हिन्दू संतों का संगठन अखिल भारतीय संत समिति और अखाड़ा परिषद जब भी राम जन्मभूमि सवाल पर विश्व हिन्दू परिषद के साथ खड़े हुए तब तब कोई न कोई परिणाम सामने आया। सन 1989 का प्रयागराज का कुंभ और गीत वामदेव जी के नेतृत्व में अखिल भारतीय संत समिति का उद्भव श्रीराम जन्मस्थान पर नवम्बर 1989 में शिलान्यास के रूप में सामने आया। और भारतीय जनता पार्टी की ताकत दो से 86 सांसदों की हो गई। विश्व हिन्दू परिषद ने उसी समय देश के श्रेष्ठ संतों की एक समिति गठित की, जिसे विश्व हिन्दू परिषद की उच्चाधिकार समिति कहते हैं औऱ इस समिति के निर्णय से पूरा संघ परिवार बंधा रहता है।

एक बार इस उच्चाधिकार समिति के निर्णय तक तो उहापोह की स्थिति होती है लेकिन निर्णय सुना दिए जाने के बाद संत आज्ञा शिरोधार्य कर पूरा संघ परिवार इसे सफल बनाने में प्राणपण से लग जाता है।

संत समाज का मानना है कि 1989 और 1992 दोनों घटनाक्रमों में एक बात सामान्य रूप पाई गई कि न्यायपालिका समय से पूर्व निर्णय देने में विफल रही। सूत्रों के मुताबिक इस बार जस्टिस दीपक मिश्रा के शुरू के व्यवहार से ऐसा लग रहा था कि राम जन्मभूमि के सवाल पर सर्वोच्च न्यायालय कोई न कोई निर्णय सुना देगा परन्तु जिस प्रकार कोर्ट के अंदर धमकी सुनवाई का बहिष्कार और 2019 के बाद निर्णय सुनाने की बात नहीं मानने पर महाभियोग तक लाने औऱ चार चार जजों की प्रेस कांफ्रेस कराने जैसे नाटक हुए, इससे विश्व हिन्दू परिषद और संत समाज का विश्वास न्यायिक व्यवस्था से उठ गया।

संतों के मुताबिक ऐसे अंधेरों के बादल के बीच यह बैठक हो रही है जब न्यायपालिका के द्वारा किसी भी प्रकार का निर्णय आने की संभावना लगभग समाप्त हो चुकी है, उस परिस्थिति में हिन्दू समाज की आस्था के प्रतीक भगवान राम के मंदिर निर्माण के लिए पुन: देश के सर्वोच्च संत मंडल, जिसे विश्व हिन्दू परिषद की उच्चाधिकार समिति भी हम कहते हैं, वह पांच अक्टूबर की होने वाली बैठक में क्या गुल खिलाएगी और आगे आने वाले भारत की राजनीति पर इसका क्या असर पड़ेगा? इसका आकलन करना अभी बहुत जल्दबाजी होगी लेकिन इतना तो तय है कि जब जब उच्चाधिकार समिति बैठी तब तब भारतीय राजनीति में गुणात्मक परिवर्तन आया है। पुन: राम मंदिर के सवाल पर उच्चाधिकार समिति की बैठक क्या रंग बिखेरती है, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।

सूत्र बताते हैं कि संघ परिवार भी संत समाज की बैचेनी भांप कर इस मामले में बेहद सक्रिय हो गया है। पिछले तीन दिनों में राम जन्मभूमि के प्रश्न पर सरसंघचालक का बयान काफी चौंकाने वाला है परन्तु यह बहुत ही सधा हुआ औऱ कार्यकर्ताओं को स्पष्ट संदेश है कि हमने यह आश्वासन किसी कोर्ट के भरोसे नहीं दिया था कि राममंदिर का निर्माण प्रारंभ हो जाएगा। फिलहाल कोर्ट में परिस्थितियां जिस प्रकार की बना दी गईं, उसमें यह बेचैनी साफ दिखती है कि एकमेव मार्ग अब संसद ही बचा है।

संतों की बेचैनी के पीछे कुछ ठोस तथ्य भी हैं, जिसका जिक्र वो करना नही भूलते। संतों के मुताबिक कोर्ट ने शुरू में यह कहा कि हम प्रतिदिन सुनवाई करेंगे। उसके लिए बेंच भी गठित कर दी। कपिल सिब्बल औऱ राजीव धवन ने यह धमकी दी कि अगर कोर्ट प्रतिदिन सुनवाई करेगा तो हम कोर्ट का बहिष्कार करेंगे।

व्यथित संत कहते हैं कि वह कोर्ट जो आतंकियों के मानवाधिकार मुद्दे पर आधी रात को सुनवाई कर सकता है, कर्नाटक में कथित सेक्युलर गठबंधन को सरकार के रूप में स्थापित करने के लिए सारी रात सुनवाई कर सकता है, वही कोर्ट प्रतिदिन सुनवाई के अपने ही बयान पर मुकर गया। हिन्दू समाज कोर्ट के इस व्यवहार पर क्रोधित है।

संघ परिवार मानता है कि यह कोर्ट का प्रश्न नहीं है, आस्था का प्रश्न है। आस्था का विषय न्यायालय में तय नहीं हो सकता है लेकिन चीफ जस्टिस ने जब यह कहा कि अब इसे मंदिर मस्जिद के रूप में नहीं लैंड डिस्प्यूट के रूप में इसे देखेंगे तो हिन्दू समाज तैयार हो गया। इससे पहले हाईकोर्ट ने इस भूमि को रामलला की भूमि स्वीकार किया था। इसलिए हिन्दू समाज तो जीत कर आया था लेकिन उसके बाद जिस तरह से देरी की गई और जिस तरीके से फैसला होने देने की प्रक्रिया को अवरुद्ध किया गया, उससे संत समाज नाराज है औऱ तत्काल कोई फैसला लेने के मूड में दिखता है।

Updated : 22 Sep 2018 7:21 PM GMT
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Swadesh Digital

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