अज्ञात सत्ता 'ऊपर वाला'
आकाश सबसे ऊंचा। ऊंचे से ऊपर। ऋग्वैदिक पूर्वजों ने शिखर ऊंचाई के लिए 'परम व्योम' शब्द प्रयोग किया है। प्रत्येक जीव आकाश छूना चाहता है। दुनिया की सभी संस्कृतियों में किसी अज्ञात सत्ता को 'ऊपर वाला' कहा जाता है। हम भारतवासी कण-कण में परमात्मा को मानते हैं, लेकिन धन, पद और यश आदि के लिए 'ऊपर वाले' की अनुकम्पा चाहते हैं। आकाश ऊपर है, सूक्ष्मतम है और सर्वव्यापी भी। वनस्पतियां भी आकाश छूना चाहती हैं। पेड़-पौधे भूगर्भ से जलरस लेते हैं। आकाश छूने के लिए ऊपर की ओर बढ़ते हैं। ऊपर उठने के लिए सारी प्राण ऊर्जा लगाते हैं। उनमें फूल खिलते हैं। वृक्ष, आकाश, देव को गंध अर्पित करते हुए उपासनारत जान पड़ते हैं। पक्षी आकाश में उड़ते हैं। वे नहीं जानते कि वैदिक पूर्वजों ने भी आकाश को देवों का निवास बताया है। बहुत संभव है कि उन्हें भी उच्चतम आकाश में बैठे सर्वोत्तम की जानकारी हो। वरना वे पूरे जीवन ऊपर उठने में ही सारी जिजीवीषा क्यों लगाते। पृथ्वी माता है और आकाश पिता। पिता खींचता है ऊपर से ऊपर की ओर। अपनी ओर। माता का प्यार उसे अपने अंक में समेटने के लिए अपनी ओर खींचता है। मुझे लगता है कि गुरूत्वाकर्षण पृथ्वी माता का प्यार है। हमारी ऊपर उठने की अभिलाषा पिता आकाश की शुभकामना का विस्तार है। स्वाभाविक ही हम सब ऊपर उठना चाहते हैं। सभी प्राणी, कीट पतंग और वनस्पति भी।
हृदयनारायण दीक्षित
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