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सियासत को नया सबक दे गया कर्नाटक

सियासत को नया सबक दे गया कर्नाटक
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कर्नाटक में पिछले पंद्रह दिनों से चली आ रही राजनीतिक उठापटक का उस समय अंत हो गया, जब विश्वासमत के दौरान कुमारस्वामी की सरकार का पतन हो गया। इस दौरान प्रदेश के राज्यपाल वजू भाई वाला ने मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को तीन बार बहुमत साबित करने का समय दिया, लेकिन तीनों बार का समय विधानसभा में विश्वासमत पर चर्चा करने में ही निकल गया। इस दौरान सत्ता पक्ष कांग्रेस और जनता दल (एस) गठबंधन सरकार को संभवतः यही लग रहा होगा कि अगर कहीं बिल्ली के भाग्य से छींका टूट जाए तो सरकार बच सकती है। शायद इसलिए ही चर्चा को आगे बढ़ाया गया। अंततः जैसा सोचा जा रहा था वैसा ही हुआ। मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के शासन का अंत हो गया।

जैसे चर्चा को आगे विस्तारित किया जा रहा था, उसका राजनीतिक दृष्टि से आंकलन किया जाए तो यही परिलक्षित होता है कि कांग्रेस और जनता दल (एस) गठबंधन सरकार लगातार जोड़तोड़ में जुटी थी कि उसकी सरकार बच जाए। लेकिन दोनों के सपनों पर पानी फिर गया। विश्वासमत के पक्ष में 99 वोट मिले जितने पहले से ही अनुमान लग रहे थे। विपक्ष में 105 वोट मिले। 223 सदस्य वाली कर्नाटक विधानसभा में बहुमत के लिए यूं तो 112 विधायकों की आवश्यकता थी, लेकिन 15 सत्तापक्ष के विधायकों के मुंबई में डेरा जमा लेने से कर्नाटक की राजनीति में एक नया पेंच उपस्थित हो गया। इन विधायकों द्वारा विधानसभा की कार्यवाही में भाग नहीं लेने के कारण बहुमत प्राप्त करने का जादुई आंकड़ा नीचे गिर गया और वह 204 की सदस्य संख्या में मात्र 103 पर आ गया। कर्नाटक में भाजपा विधायकों की संख्या 105 है। अगर मुंबई में रह रहे विधायक भी प्रदेश में बनने वाली नई सरकार का समर्थन करते हैं तो यह संख्या 120 हो जाएगी।

पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी दो बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे हैं। पहले वे 21 महीने सरकार चला सके और अब मात्र 14 महीने। इसे कुमारस्वामी का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि राजनीतिक उठापटक में वे दोनों ही बार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। वैसे इस बार यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति थी कि प्रदेश में उस पार्टी को सत्ता का सिंहासन प्राप्त हुआ जो जनता की पसंद के तौर पर तीसरे नंबर पर थी। इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि कर्नाटक की जनता ने कम से कम जनता दल (एस) का मुख्यमंत्री बनाने के लिए जनादेश नहीं दिया था, लेकिन कांग्रेस ने कुमारस्वामी को समर्थन देकर जनता द्वारा नकारी गई पार्टी को सत्ता के शिखर पर पहुंचा दिया।

वैसे तो कर्नाटक में इस सरकार का भविष्य उसी दिन तय हो गया था, जब 14 महीने पूर्व कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री की शपथ ली थी। उस समय मंत्रिमंडल के गठन में कांग्रेस हर दिन नया बखेड़ा खड़ा कर रही थी। मामला कांग्रेस आलाकमान तकपहुंचा, तब ही यह तय हो सका कि कांग्रेस की तरफ से उपमुख्यमंत्री कौन होगा। इसके बाद जैसे-जैसे सरकार चलाने की कवायद शुरू हुई, ठीक वैसे ही कांगेस की ओर से कुमारस्वामी के सामने चुनौतियां खड़ी की गईं। यह कई बार प्रकट रूप में सामने आ चुका था कि कांग्रेस के विधायक कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री तक मानने से इनकार कर देते। वे केवल सिद्धारमैया को ही सब कुछ मानते थे। इससे परेशान होकर मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने कई बार अपना दर्द सार्वजनिक किया। उन्होंने सीएम की कुर्सी को कांटों का ताज बताया था। उन्होंने कहा था कि मुझे सरकार चलाते हुए हर दिन खून के आंसू पीने को बाध्य होना पड़ रहा है। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि अच्छा हुआ कि कुमारस्वामी की सरकार गिर गई, नहीं तो आगे भी कुमारस्वामी रोने के लिए बाध्य हो रहे होते। उधर, सियासत के खेल में चोट खाये येदिउरप्पा पहले दिन से कुमारस्वामी सरकार की जड़ें हिलाने में जुटे थे।

कर्नाटक में चले पूरे राजनीतिक नाटक के निहितार्थ तलाश किए जाएं तो यही लगता है कि यह सारा खेल सत्ता केंद्रित राजनीति का ही परिणाम था, जिसमें एक तरफ भाजपा है तो दूसरी ओर कांग्रेस और जनता दल (एस) गठबंधन। कुमारस्वामी सरकार गिरने के बाद यह लगभग तय हो गया है कि अब प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनेगी और मुख्यमंत्री बनेंगे येदियुरप्पा। लेकिन कर्नाटक का राजनीतिक घटनाक्रम अपने पीछे कई सवाल भी छोड़ गया है। जिसमें पहला तो यही है कि इस प्रकार की जोड़-तोड़ वाली राजनीति क्या राज्य को सही दिशा में ले जा सकती है? कदाचित नहीं। दूसरी बात यह है कि अगर विधायक किसी लालच के कारण किसी भी प्रदेश की राजनीति को अस्थिरता के दलदल में ले जाने का प्रयास करेंगे तो यह क्या सिद्धांतों पर चलने वाली राजनीति कही जाएगी? नहीं, यह केवल अवसरवादी राजनीति ही कही जाएगी। सवाल यह भी है कि हमारे जनप्रतिनिधि ऐसा करके उस जनता का भी अपमान कर रहे हैं, जिसने दलीय निष्ठाओं के आधार पर इनको विधायक बनाया। बहरहाल, कर्नाटक के घटनाक्रम से सबक सीखने की जरूरत है।

Updated : 24 July 2019 10:59 AM GMT
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सुरेश हिंदुस्तानी

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