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संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों में गांधीवाद

संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों में गांधीवाद
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महात्मा गांधी भारत ही नहीं बल्कि वैश्विक महापुरुष थे। विश्व में कहीं भी जब अहिंसा, स्वतंत्रता,मानवता, सौहार्द,स्वच्छता,गरीबों की भलाई आदि का प्रसंग उठता है, तब महात्मा गांधी का स्मरण किया जाता है। भारत को स्वंतंत्र कराने में उन्होंने अपना जीवन लगा दिया। फिर भी वह अंग्रेजों से नहीं उनके शासन से घृणा करते थे, उनके शासन की भारत से समाप्ति चाहते थे। यह उनका मानवतावादी चिंतन था। वह पीर पराई को समझते थे। उसका निदान चाहते थे। इन्हीं गुणों ने उन्हें विश्व मानव के रूप में प्रतिष्ठित किया।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने सत्रह प्रस्तावों को घोषणा की थी। इनके मूल में गांधीवाद की ही प्रतिध्वनि थी। यही कारण था कि उत्तर प्रदेश विधानसभा ने इस बार गांधी जयंती को ऐतिहासिक बनाने का निर्णय किया था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित की पहल पर छत्तीस घण्टे के सत्र का प्रस्ताव किया गया था। इसके लिए सर्वदलीय बैठक में सहमति बनाने का प्रयास किया गया था।

कुछ भी हो उत्तर प्रदेश विधानसभा ने महात्मा गांधी की एक सौ पचासवीं जयंती पर इतिहास बनाया है। लगातार छत्तीस घण्टे तक सत्र का चलना असाधारण था। वह भाग्यशाली विधायक थे जो इस ऐतिहासिक अवसर के गवाह बने।

यह राजनीति से ऊपर उठकर महात्मा गांधी को सम्मान देने का अद्भुत अवसर था। सरकार की आलोचना तो हरपल की जा सकती है। लेकिन बापू की एक सौ पचासवीं जयंती पर छत्तीस घण्टे का यह सत्र दुर्लभ था। यहाँ बात केवल एक सौ पचासवीं जयंती तक ही सीमित नहीं थी। बल्कि देश और उत्तर प्रदेश को संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों की जानकारी भी देने और अमल का संकल्प व्यक्त करने का भी यह अभूतपूर्व अवसर था। इसका बड़ा कारण यह था कि इन प्रस्तावों में गांधी चिंतन की ही झलक है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत् विकास लक्ष्य और उद्देश्य में वह बिंदु समाहित है जिन्हें हासिल करने का गांधी जी ने सदैव प्रयास किया। गरीबों को देखकर ही उन्होंने अपने ऊपर न्यूनतम उपभोग का सिद्धान्त लागू किया था। इससे वह कभी भी विचलित नहीं हुए। संयुक्त राष्ट्र संघ से सतत विकास प्रस्तावों में गरीबी, भुखमरी, शिक्षा, स्वास्थ्य और खुशहाली, लैंगिक समानता, जल एवं स्वच्छता, ऊर्जा, आर्थिक वृद्धि और उत्कृष्ट कार्य, बुनियादी सुविधाएं, उद्योग एवं नवाचार, असमानताओं में कमी, संवहनीय शहर, उपभोग एवं उत्पादन, जलवायु कार्रवाई, पारिस्थितिक प्रणालियां, शांति, न्याय,भागीदारी के विषय शामिल है। इनको ध्यान से देखें तो यही गांधी चिंतन के मूल आधार है। वह ऐसा विश्व चाहते थे जिसमें गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, बीमारी, असमानता,भुखमरी न हो। इन्हीं पर तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी जोर दिया। गांधी का सपना समता मूलक समाज था। वह विश्व को अधिक संरक्षित बनाना चाहते थे। शांति, न्याय, पर्यावरण संरक्षण को वरीयता देते थे। वह समस्याओं के निराकरण में सबकी भागीदारी चाहते थे। समाज में सक्षम व्यक्ति का यह दायित्व है कि वह निर्बलों की सहायता करे। अपने को संम्पत्ति का ट्रस्टी समझे। इसी प्रकार धनी देश अविकसित देशों की सहायता करे। गांधी चिंतन की भावना थी कि कोई पीछे न छूटे। संयुक्त राष्ट्र संघ का भी यही विचार है। इस लक्ष्य को हासिल करने का प्रयास करना आवश्यक है। अंत्योदय का मूलमंत्र भी यही है। इसी के मद्देनजर नरेंद्र मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया,डिजिटल इंडिया,जैसी योजनाएं लागू की।

इन सतत् विकास लक्ष्यों का सीधा संबंध प्रदेश सरकारों से है। यही सोच कर योगी आदित्यनाथ और हृदयनारायण दीक्षित ने विधानसभा के विशेष सत्र के आयोजन की रचना बनाई थी। विपक्ष के लिए भी महात्मा गांधी के विचार को संयुक्तराष्ट्र संघ तक जोड़कर देखने का यह अवसर था। इसमें उसने चूक की है। फिर भी यह अधिवेशन सफल रहा। सत्र के माध्यम से योगी सरकार ने सतत विकास के लक्ष्य हासिल करने का मंसूबा दिखाया है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विशेष सत्र के बहिष्कार पर विपक्ष पर हमला बोला। उनके निर्णय की तुलना दुर्योंधन से की।

दुर्योधन धर्म व अधर्म के मर्म को समझता था। किंतु उसकी विवशता थी कि धर्म की प्रवृत्ति को स्वीकार नहीं कर सकता था। अधर्म की प्रवृत्ति से मुक्त नहीं हो सकता था। विपक्ष ने दुर्योधन की इस उक्ति को साबित कर दिया।

उनके अनुसार विपक्ष विकास की चर्चा से बचना चाहता था। वर्तमान सरकार ने जंगलराज, अराजकता समाप्त कर विकास का माहौल बनाया है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। )

Updated : 4 Oct 2019 10:23 AM GMT
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