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देश की नब्ज नहीं पकड़ सके अण्णा

सुरेश हिन्दुस्थानी

देश की नब्ज नहीं पकड़ सके अण्णा
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समाजसेवी अण्णा हजारे द्वारा लोकपाल और किसानों की समस्या को लेकर किया गया धरना- अनशन इस बार बिना किसी सुर्खियों के समाप्त हो गया। अण्णा हजारे इस बार वैसा चमत्कार नहीं दिखा पाए, जैसा वे दिखाना चह रहे थे। जिस अण्णा हजारे के आंदोलन में पूरा देश उद्वेलित हो गया था, उनके द्वारा वर्तमान में किया गया आंदोलन मात्र सात दिवस में ही असफलता का ठप्पा चिपकाकर समाप्त हो गया। 2011 में समाजसेवी अण्णा हजारे ने भ्रष्टाचार के विरोध में व्यापक आंदोलन किया था। उस आंदोलन के कारण अण्णा हजारे ने देश में एक क्रांति का सूत्रपात किया था, लेकिन वर्तमान में उनके द्वारा किया गया आंदोलन असफल क्यों हुआ? स्वाभाविक रुप से यही दिखाई देता था कि उस समय भ्रष्टाचार के कारण देश की जनता बहुत ही परेशान थी। उस समय केन्द्र में शासन कर रही कांग्रेस नीत संप्रग की सरकार के कार्यकाल में प्रतिदिन भ्रष्टाचार की खबरें आ रही थीं। अण्णा हजारे ने जनता की दुखती रग पर हाथ रख दिया और जनता उनके पक्ष में खड़ी होती दिखाई दी। दूसरी सबसे बड़ी बात यह भी थी कि अण्णा हजारे के आंदोलन को अप्रत्यक्ष रुप से राजनीतिक समर्थन भी मिला था। इस बार कहीं से भी इस प्रकार की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दी।

कहा जाता है कि देश में जब भी सरकारों के विरोध में वातावरण तैयार होता है, तब सरकार के विरोध में किया जाने वाला आंदोलन स्वाभाविक रुप से सफल हो जाता है। एक खास बात यह भी है कि उस समय भ्रष्टाचार के विरोध में देश में जो माहौल बना था, वह मात्र अण्णा हजारे के आंदोलन के कारण नहीं बना, उसके पीछे उस समय की केन्द्र सरकार की कारगुजारियां भी बहुत बड़ा कारण थीं। अण्णा जी ने यह गलतफहमी पाल ली कि पूरा देश उनके पक्ष में खड़ा है। जनता अण्णा के समर्थन में नहीं, बल्कि सरकार के विरोध में थी। उस सरकार के विरोध में जिसने जमकर भ्रष्टाचार किया। उसके विपरीत वर्तमान में केन्द्र सरकार के स्तर पर ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। यह सभी को मालूम है कि केन्द्र सरकार के स्तर पर भ्रष्टाचार का एक भी मामला अभी तक सामने नहीं आया है, इसके कारण जनता अभी सरकार की ओर से आशान्वित ही दिखाई दे रही है। अण्णा हजारे वर्तमान समय में जनता की नब्ज को पहचानने में भूल कर बैठे और परिणाम वही निकला, जिसका पहले से ही पता था।

अण्णा हजारे की मांगों की बात की जाए तो यह स्वाभाविक ही है कि उनकी मांगें पहली दृष्टि में ही उचित नही हैं। आज देश का किसान बहुत परेशान है और भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए लोकपाल का होना भी बहुत ही आवश्यक है, लेकिन अण्णा हजारे द्वारा वर्तमान समय में इन मांगों को लेकर अनशन करना ऐसा प्रतीत कराता है कि उनका तीर निशाने पर नहीं लगा। अण्णा के आंदोलन का बुरी तरह से असफल होना यह भी इंगित करता है कि देश की अधिकांश जनता इसे कांगे्रस को राजनीतिक लाभ दिलाने की दिशा की ओर उठाया गया कदम ही मानकर चल रही थी। इस बात को अण्णा हजारे भी जानते हैं कि कांगे्रस के नेताओं ने जो भी किया है, उसे जनता अभी तक भूली नहीं है। इसलिए अण्णा हजारे द्वारा किया गया यह आंदोलन वास्तव में समय की शिला पर प्रासंगिक नहीं था।

दूसरी सबसे बड़ी बात यह भी है कि अण्णा हजारे अपने आंदोलन को आज कितना भी गैर राजनीतिक स्वरुप दिखाने की बात करें, लेकिन उसे गैर राजनीतिक नहीं माना जा सकता। क्योंकि उनका पहला आंदोलन भी गैर राजनीतिक आंदोलन कहकर ही प्रचारित किया गया था, लेकिन उसके बाद देश में एक नई राजनीतिक पार्टी का गठन हुआ और उस आंदोलन से प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचने वाले अरविन्द केजरीवाल जैसे लोग खुलकर राजनीति करते हुए दिल्ली राज्य के सिंहासन पर पदारुढ़ हो गए। अण्णा हजारे के वर्तमान आंदोलन को कोई अरविन्द केजरीवाल नहीं मिला, जो राजनीतिक फायदा ले सके, इसलिए भी अण्णा हजारे का यह आंदोलन अखबार में शीर्ष पर नहीं आ सका। इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि अण्णा जी के आंदोलन में अब वैसा युवा जोश भी नहीं रहा, जो आज से लगभग आठ साल पहले था।

समाजसेवी अण्णा हजारे को देश की वर्तमान स्थिति का अंदाज नहीं होने के कारण ही उनको देश की जनता का साथ नहीं मिला। वास्तव में जनसमर्थन तो तभी मिलता है, जब जनता की आवाज उठाई जाए, लेकिन वर्तमान में जनता भ्रष्टाचार से कतई परेशान नहीं है। अण्णा जी के अनशन में भी केवल उनके गांव के लोग ही शामिल हुए, उनकी आवाज को देश नहीं सुन सका। वर्तमान में किया गया आंदोलन लोकपाल की नियुक्ति और किसानों की समस्याओं को लेकर किया गया था। हालांकि अण्णा हजारे अपने गांव रालेगण सिद्धी में पिछले सात दिन से आमरण अनशन पर बैठे थे। उनकी हालत बिगड़ रही थी, जिससे सरकार पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा था। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के मनाने पर अन्ना मान गए और उन्होंने अपना आमरण अनशन खत्म कर दिया। इस बार अण्णा हजारे को वह समर्थन नहीं मिला जैसा कि वर्ष 2011 में मिला था।

अण्णा हजारे के आंदोलन से राजनीति में धूमकेतु की भांति चमके अरविन्द केजरीवाल इस बार के आंदोलन में न तो शामिल हुए और न ही इस आंदोलन को समर्थन दिया। हालांकि उनके समर्थन करने से जनता का समर्थन मिल जाता, यह कहना कठिन ही है। अब अण्णा हजारे को भी यह समझ जाना चाहिए कि जनता के भावों में व्यापक परिवर्तन आ गया है। देश में एक अच्छी सरकार काम कर रही है, यह अण्णा हजारे को समझना ही चाहिए।

Updated : 8 Feb 2019 12:50 PM GMT
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सुरेश हिंदुस्तानी

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