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माइक्रोसॉफ्ट के पूर्व अधिकारी ने उठाया हिंदी में वैज्ञानिक साहित्य प्रकाशित करने का बीड़ा

माइक्रोसॉफ्ट के पूर्व अधिकारी ने उठाया हिंदी में वैज्ञानिक साहित्य प्रकाशित करने का बीड़ा
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नई दिल्ली। सूचना प्रौद्योगिकी की जानी-मानी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट में वरिष्ठ अधिकारी रहे सानु संक्रान्त का मानना है कि केवल मातृभाषा के जरिये ही बच्चे में ज्ञान-विज्ञान की उत्कृष्ट प्रतिभा विकसित की जा सकती है तथा कोई देश सर्वांगीण विकास कर सकता है। श्री संक्रांत ने दुनिया के अलग-अलग देशों में मातृभाषा के जरिये बच्चों को ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा दिए जाने पर अनुसंधान किया है| वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि विदेशी भाषा के जरिये कोई देश शीर्ष पर नहीं पहुंच सकता। उन्होंने कहा कि भारत में व्याप्त यह धारणा पूरी तरह गलत है कि अंग्रेजी के जरिये ही विज्ञान या उच्च शिक्षा दी जा सकती है। आंकड़ों के आधार पर उन्होंने कहा कि दुनिया के सबसे विकसित 20 देशों में से 16 में शिक्षा का माध्यम वहां की मातृभाषा जैसे जापानी, फ्रेंच, स्पेनिश और कोरियाई ही हैं। अन्य चार देशों में अंग्रेजी शिक्षा माध्यम है लेकिन गौर करने की बात यह है कि उनकी मातृभाषा भी अंग्रेजी ही है।

दूसरी ओर दुनिया के 20 सबसे कम विकसित देशों में ज्ञान विज्ञान की भाषा मातृभाषा नहीं होकर अंग्रेजी या फ्रेंच, स्पेनिश जैसी औपनिवेशिक भाषा है। यह देश अभी तक अपने यहां पूर्व शासकों की भाषा ही चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि इजराइल जैसे छोटे देश में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) की सारी प्रणाली हिब्रू भाषा में होती है। यदि इजराइल में ऐसा हो सकता है तो भारत जैसे विशाल देश में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में आईटी का तंत्र विकसित क्यों नहीं किया जा सकता?

श्री संक्रांत ने भारत में हिंदी में स्तरीय विज्ञान पुस्तकों के अभाव को ध्यान में रखते हुए विभिन्न विषयों पर पुस्तकें प्रकाशित करने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के एक उत्साही युवक अंकुर के साथ मिलकर गरुड़ बुक्स प्रकाशन संस्था की स्थापना की है। प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में गरुड़ बुक्स की पुस्तकों के पूर्व प्रकाशन कार्यक्रम में श्री सानु ने अपनी भावी योजनाओं की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस काम में वह सरकार की मदद नहीं चाहते बल्कि सरकार की मदद करना चाहते हैं। उन्होंने समाज और प्रबुद्ध नागरिकों से आग्रह किया कि वे मातृभाषा में शिक्षा के इस महान यज्ञ की सफलता में अपना योगदान करें।

कार्यक्रम में फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री ने कहा कि भारत में एक योजनाबद्ध तरीके से हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की उपेक्षा की गयी तथा अंग्रेजी भाषा थोपी गयी। आजादी मिलने के बावजूद भारत में गुलामी की मानसिकता कायम रखने की कोशिश की गयी| यही कारण है कि शिक्षा एवं अन्य क्षेत्रों में आज भी भारतीयता नदारद दिखाई देती है। विवेक अग्निहोत्री ने देश में वामपंथी उग्रवाद पर 'अर्बन नक्सल' शीर्षक से एक पुस्तक लिखी है जिसके कवर पेज का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम में श्री गणेश वर्मा की पुस्तक 'गीतांजलि पुनः पाठ' का विमोचन भी किया गया। इस पुस्तक में गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की कालजयी कृति 'गीतांजलि' का हिन्दी में काव्य रूपांतरण किया गया है।

Updated : 13 Jan 2018 12:00 AM GMT
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