केरल में लगना चाहिए राष्ट्रपति शासन
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- जनाधिकार समिति के धरना प्रदर्शन में उठी मांग
- लगभग पूरा शहर ही उमड़ पड़ा धरना प्रदर्शन में
ग्वालियर, न.सं.। केरल की माकपा सरकार अपने राज्य के नागरिकों की जान-माल की सुरक्षा करने में पूरी तरह विफल साबित हो रही है। वहां की सरकार के इशारे पर ही न केवल राष्ट्रवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं की अपितु विरोधी विचारधारा वाले लोगों की बर्बरता पूर्वक हत्याएं की जा रही हैं, इसलिए केरल की राज्य सरकार को तत्काल बर्खास्त कर वहां आपातकाल लगाने के साथ राष्ट्रपति शासन लागू किया जाना चाहिए। यह मांग शुक्रवार को जनाधिकार समिति ग्वालियर द्वारा फूलबाग चौराहे पर आयोजित धरना-प्रदर्शन में उभरकर सामने आई।
भारतीय शिक्षण मंडल के अ.भा. महामंत्री डॉ. उमाशंकर पचौरी ने कहा कि राक्षसी वृत्ति से हमारे भारतीय शास्त्र हमें हमेशा सचेत करते रहे हैं। इस कलियुग में कम्युनिस्ट भी एक राक्षसी वृत्ति है। इनकी विचारधारा भारत से बाहर की है। इन्होंने अपना हित साधने के लिए गरीब, किसान, मजदूरों को एकत्रित कर समस्या मूलक संगठन खड़ा किया, लेकिन जैसे-जैसे देश की जनता को इनकी स्वार्थी विचारधारा समझ में आती गई वैसे ही वैसे इनकी विचारधारा खत्म होती चली गई। उन्होंने कहा कि मार्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की विचारधारा को अपना कर ही हम कम्युनिस्टों को पूरी तरह समाप्त कर सकते हैं। इसके लिए हमें केरल के लोगों विशेषकर राष्ट्र भक्त युवा तरुणाई को जागरूक करना पड़ेगा। वहां की युवा तरुणाई को इन्हीं की भाषा में जवाब देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि केरल में कानून व्यवस्था का पालन नहीं हो पा रहा है, इसलिए वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए।
धरने को संत कृपाल सिंह महाराज, ढोली बुआ महाराज, रामतीर्थ महाराज, रामसेवक दास महाराज, मध्य भारतीय हिन्दी साहित्य सभा ग्वालियर के अध्यक्ष डॉ. संतोष अवस्थी, अचलेश्वर महादेव सार्वजनिक न्यास के अध्यक्ष हरीदास अग्रवाल, भाजपा के प्रांत कार्यकारिणी सदस्य विवेक जोशी, बार ऐसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल मिश्रा एवं पूर्व न्यायाधीश प्रभाकांत शुक्ल ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए केरल में राष्ट्रपति शासन लगाने की वकालत की। अंत में राष्ट्रगान के साथ धरने का समापन हुआ। बाद में राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के नाम तहसीलदार मधुलिका तोमर को ज्ञापन सौंपा गया।
हम लड़ेंगे केरल के राष्ट्रवादियों की लड़ाई: मिश्रा
उच्च न्यायालय अभिभाषक संघ के अध्यक्ष अनिल मिश्रा ने कहा कि प्रश्न ये नहीं है कि केरल में जो मारे जा रहे हैं, वे एक राष्ट्रवादी संगठन के कार्यकर्ता हैं, वे भारत के नागरिक भी हैं और प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा करना सरकार का दायित्व है। हमारे संविधान ने भी प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा का मौलिक अधिकार दिया है, लेकिन केरल में ऐसा लगता है जैसे वहां विदेशी आक्रमण हो रहा है। एक दिन पहले ही वहां संघ कार्यालय पर बम से हमला किया गया। ऐसे माहौल में वहां के लगों का शांति से रहना मुश्किल हो गया है। ऐसे में वहां आपातकाल लगाना नितांत आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं होता है तो हमें इस मद्दे को लेकर न्यायालय में जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि केरल के राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं और वहां के नागरिकों की सुरक्षा हो। इसके लिए हम की न्यायालय में लड़ाई लड़ने को तैयार हैं।
यह राज्य प्रवर्तक हिंसा है: शुक्ल
पूर्व न्यायाधीश प्रभाकांत शर्मा ने भी कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि किसी राज्य की सरकार नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रहती है तो वहां की सरकार को बर्खास्त करने के लिए धारा 356 का उपयोग करना उचित होगा। श्री शुक्ल ने कहा कि केरल में हो जो हिंसा का वातावरण है, वह राज्य प्रवर्तक हिंसा है। वहां राज्य प्रवर्तक हिंसा के कारण संवैधिनिक व्यवस्था विफल हो चुकी है, इसलिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को राज्यपाल से रिपोर्ट मंगाकर केरल की सरकार को भंग कर वहां राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए।