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तीन माह से नहीं जांची गई हैं बच्चों की कॉपियां

तीन माह से नहीं जांची गई हैं बच्चों की कॉपियां
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ग्वालियर। सरकारी स्कूलों का अब भगवान ही मालिक है। इन स्कूलों में बच्चों की संख्या दिन पर दिन कम होती जा रही है। बच्चों की संख्या कम होने का मुख्य कारण यह है कि यहां पढ़ाने वाले शिक्षक इन बच्चों की पढ़ाई में रूचि नहीं ले रहे हैं। शा.क.मा.विद्यालय दाल बाजार की स्थिति यह है कि यहां तीन-तीन माह से बच्चों की कॉपियां तक नहीं जांची गई हंै। वहीं शिक्षकों का कहना है कि बच्चे भी पढ़ाई में किसी प्रकार से रूचि नहीं दिखाते हैं, इनको जो काम दिया जाता है उसे समय पर नहीं करते हैं। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई का स्तर गिरना स्वाभाविक बात है।

दाल बाजार टापू मोहल्ले में शा.क.मा.विद्यालय सामुदायिक भवन में संचालित किया जा रहा है। इस विद्यालय में मात्र 25 बच्चे और तीन शिक्षक हैं जो नियम के अनुसार गलत हैं। बच्चों की कॉपियों की स्थिति यह है कि तीन-तीन माह पूर्व से इन बच्चों की कॉपियां तक नहीं जांची गई हैं। बच्चों की पढ़ाई का स्तर इतना कमजोर है कि बच्चों को कोई भी प्रश्न तक याद नहीं है। बच्चें अपनी कॉपियों को साथ लेकर तक नहीं आते हैं।

स्कूलों का होगा निजीकरण:- सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आने वाले समय में इन सरकारी स्कूलों का निजीकरण हो जाएगा। इसके बाद जो शिक्षक बचेंगे उन्हें अन्य विभागों में स्थानांतरित किया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि सरकार द्वारा ऐसा करने का मुख्य कारण इन स्कूलों की दशा को सुधारना है।

न गणित के प्रश्न आते हैं और न ही प्रश्न- उत्तर याद हैं:- इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की पढ़ाई का स्तर बहुत कमजोर है। इन बच्चों को अपनी किताबों के पाठ तक नहीं पता हैं। यहां तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कौन हैं बच्चे इनके नाम से अपरिचित हैं। बच्चों को 15 अगस्त कब आता है यह भी नहीं पता है। मजेदार बात तो यह है कि इन बच्चों के अर्द्धवार्षिक पेपर आने वाले हैं ऐसे में बच्चे कॉपियों में क्या लिखेंगे और क्या प्रश्न हल करेंगे बहुत ही चिंता का विषय है।

इनका कहना है

‘बच्चों का स्तर पिछली कक्षाओं से गिरा हुआ है। अब बच्चों पर किताबों का बोझ बढ़ गया है बच्चें पढ़ नहीं पा रहे हैं। प्रशासन ने हमारी ड्यूटी दूसरे स्थान पर लगा दी है तो हम बच्चों को पढ़ा भी नहीं पा रहे हैं। ऐसे में बच्चों का भूलना स्वाभाविक ही है।’

संजय गुप्ता, शिक्षक

‘बच्चों को पढ़ने के लिए बहुत समझाते हैं लेकिन बच्चे पढ़ना नहीं चाहते हैं। इनके माता-पिता भी पढ़ाई में इनकी मदद नहीं करते हैं। याद करने के लिए कहते हैं तो याद करके नहीं लाते हैं। बच्चों को डांट सकते नहीं हैं, ऐसी स्थिति में पढ़ाई का स्तर तो प्रभावित होता ही है।’

सुषमा कौशिक, अध्यापक

Updated : 2 Nov 2017 12:00 AM GMT
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