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लोक का दीदी-अम्मा तंत्र

लोक का दीदी-अम्मा तंत्र

लोकतंत्र की विजय में दूरगामी विकास का विवेक,सभी को एक साथ लेकर चलने की भूख,भ्रष्टाचार मिटाने का सख्त जनादेश व राजनीतिक हिंसा के चक्रव्यूह को तोडऩे की ललक प्रमुख होती है।परंतु पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु चुनावी नतीजों ने विकल्पहीनता और भाजपा की कमजोर उपस्थिति में लोक के "दीदी-अम्मा" तंत्र पर एकमात्र भरोसा करने की मजबूरी को ही व्यक्त किया है।मतलब साफ़ है कि पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र की जगह लोक का दीदी तंत्र जीता है तो तमिलनाडु में लोक का अम्मा तंत्र। राज्यों की आकांक्षाओं में सबल लोकतंत्र की जगह जातिवाद, सांप्रदयिकता व अपराध जगत और भ्रष्टाचार का घालमेल गहरी ठसक में स्पष्ट रूप से पढ़ा जा सकता है।

आजादी के बाद कांग्रेस को खत्म करने की महात्मा गांधी की अवज्ञा का दुष्परिणाम आज कांग्रेस के सामने है इसी प्रकार से क्षेत्रीय दलों की ओछी व संकीर्णवादी राजनीति में केंद्र के विरोधी होने व टकराहट में कलहपूर्ण राजनीति को बढ़ावा देना कतई राष्ट्र विकास की मजबूती में स्वस्थ लोकतंत्र के अटूट विश्वास का परिचायक सिद्ध नहीं होता। पश्चिमबंगाल राज्य का इतिहास संस्कृति व देशप्रेम जिस खुशगवार लोकतंत्र की आवश्यकता महसूस करता है उसकी गारंटी न वाम सत्ताओं ने दी थी और न ही अब लोक का दीदी तंत्र दे रहा है।

इसी प्रकार से तमिलनाडु में राजीवगांधी के हत्यारों की राजनीति व जनता को दास समझने वाले खैरात बांटने के फौरी उपायों के साथ भ्रष्टाचार की युगलबंदी में तमिलों के आत्मनिर्भर गौरव को नष्ट करने की गंदी राजनीति जारी है सत्ता पर काबिज होना खास है लोकतंत्र का ताकतवर होना खास नहीं है। लोक का अम्मा तंत्र राजतन्त्र की तस्वीर में तेजतर्रार सशक्त नारी की बेबुनियाद उपमा से सुशोभित है।तमिलनाडु में कांग्रेस काले चश्मे की सत्ता दलाली को केंद्र की कुर्सी के लिए भुनाती रही है ऐसे में उसका बंटाढार तो होना ही था।बड़े-पुराने दलों की बुरी आदतों का सत्ता भोग व सत्ता हांसिल करने के तिकड़मी संजाल को त्यागने की जगह उनसे जीत का हार तैयार करने का हुनर लोक के दीदी-अम्मा तंत्र का स्पष्ट गवाह बन रहा है जहाँ सच्चे लोकतंत्र की जीत का आना अभी शेष है।
हरिओम जोशी

Updated : 31 May 2016 12:00 AM GMT
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